राजधानी के पुराने लखनऊ में 7 दिवसीय श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का हुआ प्रारंभ…

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9 PM News Live / लखनऊ…
राजधानी के पुराने लखनऊ में 7 दिवसीय श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का हुआ प्रारंभ…
राजधानी लखनऊ के चौक क्षेत्र स्तिथ महावीर जी मंदिर के प्रांगण में श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का शुभारंभ कल बृहस्पतिवार यानि 28-01-2021 को भव्य कलश शोभा यात्रा एवं आकर्षक झांकी के साथ शुरू हुआ था। इस मौके पर भक्तिमय माहौल में लोगों ने जगह-जगह कलश शोभा यात्रा का स्वागत किया।
कलश शोभा यात्रा में क्षेत्र के 51 कुंवारी कन्याओं व महिलाओं ने भाग लिया था। यज्ञ के मुख्य यजमान आचार्य अजय कुमार मिश्रा एवं उनकी पत्नी  कलश यात्रा के आगे-आगे चल रहे थे। उनके पीछे  काफी संख्या में कलश लिए कुवारी कन्याएं एवं महिलाएं एवं श्रद्धालु चल रहे थे। गाजे-बाजे के साथ महावीर जी के मंदिर से निकलकर लाल मन्दिर, काली जी मंदिर होते हुए वापस यज्ञ स्थल पहुंचा था।
आज भागवत कथा के दूसरे दिन भी भक्तो का लगा रहा तांता…
श्री मद भागवत कथा के दूसरे दिन कथा वाचक ईशान अवस्थी व्यास ने बताया कि भगवान की भक्ति भोग विलास प्राप्त करने के लिए नहीं वरन् भगवान को ही प्राप्त करने के लिए होनी चाहिए। कर्दम ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें पुत्र रूप में अपने आप को देने की कथा सुनाते हुए बताया कि कर्दम ऋषि एवं देवहुति के यहां भगवान श्री कपिल देव ने अवतार लिया। नवधा भक्ति, सांख्य शास्त्र, विवेक के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति का ज्ञान दिया गया और बताया गया कि जीव किन-किन कारणों से नरगगामी होता है और जीव को किस कारण मनुष्य देह प्राप्त होती है। कथा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि दक्ष अभिमान का प्रतीक था अतः भगवान शंकर के गणों द्वारा उसके यज्ञ का विध्वंस कर दिया। दक्ष का सिर धड से अलग कर दिया गया परन्तु शिव की कृपा से यज्ञ को पूरा किया और बकरे के सिर से जोड़ दिया गया।
ध्रुव चरित्र की कथा को विस्तार से सुनाते हुए बताया कि ध्रुव ने छह वर्ष की आयु में ही पांच माह तक कठोर तपस्या से भगवान नारायण के दर्शन वरदान प्राप्त कर लिए और ध्रुव पद को प्राप्त किया। कथा में प्राचीन बर्हि के पुत्रों, प्रचेताओं का भगवान शंकर से मिलना और शंकर भगवान द्वारा ज्ञान प्राप्त करने की कथा सुनाई। श्रीमद् भागवत कथा में प्रियव्रत के वंश की कथा सुनाते हुए बताया कि प्रियव्रत ने ब्रह्मा की आज्ञा से विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मति से विवाह किया और आग्नीघ्र आदि दस पुत्र हुए और आग्नीघ्र के नाभी और नाभी के यहां भगवान ने ऋषभ देव रूप में अवतार लिया। भगवान ऋषभ देव की विस्तार से कथा सुनाते हुए द्वितीय दिवस की कथा को विश्राम दिया गया।

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